Aasha ka sandesh | Hindi book summay


आशा का सन्देश हिन्दी बुक समरी

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आशा का सन्देश

आशा का सन्देश इस पुस्तक के लेखक हैं रिच डेवास | जो एमवे कारपोरशन के को-फाउंडर हैं | एमवे , डायरेक्ट सेल्स इंडस्ट्री की पूरी दुनिया में एक जानी मानी कंपनी हैं |

लेखक ने अपने जीवन के अनुभवों को अनमोल मोतियों की तरह यहाँ पर पिरोया है | इस किताब में अपने अनुभव से उन्होंने जीवन के 10 महान सबक बताये हैं | इसे पढ़ने का अनुभव बिलकुल वैसा ही होता है जैसे आप इस संसार के समंदर में से एक-एक करके 10 अनमोल मोती चुन रहे हों | मैंने इस किताब को अलग- अलग समयों में कई बार पढ़ा है और जब भी इसे दुबारा पढता हूँ हर बार मुझे कुछ नये मोती फिर से मिल जाते हैं |
Amway

सबक 1 आशा

एक अच्छी चुनौती हमें नये अवसर प्रदान करती है सीखने , विकास करने ,  शक्तिशाली बनने , किसी अधिक ऊँचे लक्ष्य तक पहुँचने के लिए | और भविष्य हमेशा ईश्वर के हाथों में होता है |
अनपेक्षित चुनौतियों के दौरान आशावादी बने रहना ज्यादा मुश्किल होता है |
जब आप पानी में नाव चलाते हैं , तो हवा आपके रास्ते में कई विचलित करने वाली स्थितियां उत्पन्न कर देती है | जीवन भी यही करता है | और यह विचलित करने वाली स्थितियां हमारी परिस्थितियों में होने वाले ये परिवर्तन हमें या तो बना सकते हैं , या फिर मिटा सकते हैं | हम जीवन में कितने सफल होंगे , यह इस बात से तय नहीं होता है कि हम अपने अच्छे दिनों का सामना किस तरह करते हैं | सफलता तो इस बात से तय होती है कि हम बुरे दिनों का सामना किस तरह करते हैं |
ईश्वर में आशा जीवन के पथ पर रोशनी प्रदान करती है | 

सबक २ लगन

जब तक आप कोशिश नहीं करेंगे , तब तक आप यह कभी नहीं जान पाएंगे कि आप क्या हासिल कर सकते हैं | यह सत्य इतना आसान है कि कई लोग इसे पूरी तरह अनदेखा कर देते हैं |
लगन जीवन में सफलता का सबसे महत्वपूर्ण तत्त्व है | इसमें दृढ निश्चय और मेहनत करने की इच्छा शामिल है , चाहे बाधा कोई भी हो | अगर आपमें लड़खड़ाने और गिरने के बावजूद आगे बढ़ने की इच्छा है , तो आपकी सफलता तय है | सौ बार गिरने के बाद भी अगर आप कूदकर उठते हैं और कहतें हैं - यह रहा १०१ वीं बार, तो निश्चित तौर पर आप सफल होंगे |
लगन और जिद में फर्क होता है | जिद आपको मूर्खतापूर्ण और असफल व्यवहार की बंद गली में ले जाती है , जबकि लगन आपको आगे बढाती है | जिद आपको यथार्थ से काट देती है और इसका परिणाम अकर्मण्यता हो सकता है | लगन आपको जीवन से जोड़े रखती है और कर्मठ बनाती है |
लगन का एक लक्ष्य होता है | यह किसी निर्णय से शुरू होती है और किसी लक्ष्य की तरफ बढ़ती है | जिद लक्ष्यहीन और निरुद्देश्य होती है |
छोटे निर्णय एकत्रित और इकठ्ठे होकर एक बड़े निर्णय की तरह दिखने लगते हैं |जो संभव नजर आने लगता है | एक बड़ा निर्णय कई छोटे निर्णयों का महायोग होता है |
इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि निर्णय छोटे हैं या बड़े , निर्णय लेने का अर्थ है अपने लिए लक्ष्य निर्धारित करना |
अगर आप भाग्य की गर्दन पकड़ने का साहस करते हैं और एक कठोर व महत्वपूर्ण निर्णय लेते हैं , तो यह आपका जीवन बदल देता है |
जब आप अपने लक्ष्य बना लें और पूरे दिल से उसका पीछा करने की ठान लें , तो आपका अगला कदम यह होता है कि आप कीमत का हिसाब लगायें | अगर आप पहले से ही यह बात जानते हैं कि लक्ष्य का पीछा करने में समय और प्रतिबद्धता की जरुरत होगी , तो बाद में आप पीछे नहीं हटेंगे |
जब आप लक्ष्य निर्धारित कर लेते हैं और उसे हासिल करने के लिए कमर कस लेतें हैं , तब भी जब आप थके हुए और हताश हों , तो लगन ही आपको मंजिल तक पहुंचाती है |
जब भी आपके सामने असफलता या निराशा आती है , तो आपके पास सिर्फ दो विकल्प होते हैं , आप हारकर मैदान छोड़ सकते हैं , या फिर आप मैदान में डटे रहते हैं |
सिर्फ एक गुण , जो जीवन में सफलता हासिल करने में आपकी मदद करता है और वह है लगन | यह बुद्धि , शारीरिक योग्यता , सुंदर चेहरे या व्यक्तित्व के जादू से अधिक महत्वपूर्ण है | लगन आत्मा की गहराई से आती है | यह ईश्वर का दिया वरदान है , जो हमारी अन्य कमियों को पूरा करने के लिए दिया जाता है | इसकी शक्ति को कभी कम न समझें |

सबक ३ विश्वास

जो लोग नीचे निशाना साधते हैं , उनका निशाना अक्सर सही लगता है | क्योंकि निशाना साधते समय उनका लक्ष्य होता है कुछ नहीं, और इसलिए आम तौर पर उनका निशाना सही लगता है | परंतु जिनमें ऊँचे लक्ष्य पर निशाना साधने का साहस होता है, वे हर दिन इसका अभ्यास करते हैं जब तक कि वे सफल न हो जायें |
हर आदमी वह काम कर सकता है , जिसे करने की वह ठान ले | और यह विकल्प हम सबके पास होता है | हम अपने लक्ष्यों में और अपने आप में विश्वास करने का चुनाव करते हैं |
कोई भी व्यक्ति इस तरह के आत्मविश्वास का चुनाव कर सकता है | आत्मविश्वास एक चुनाव भी है और उपहार भी | अगर आपको यह उपहार नहीं मिला , तब भी आप इसका चुनाव कर सकते हैं | और जब आप यह चुनाव करेंगे , तो आपको यह उपहार अपने आप मिल जायेगा | यह मुर्गी और अंडे के प्रश्न की तरह है | इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि पहले कौन आया |
विश्वास की जड़ें अक्सर इस आशा में होती हैं कि सब कुछ ठीक हो जायेगा | विश्वास की कमी की वजह से अपने सपनों का दम न घुटने दें | पर्याप्त ज्ञान होने का इंतजार न करें | अगर आप ऐसा करेंगे , तो आप कभी शुरू नहीं कर पाएंगे | जब तक आप किसी काम को करना शुरू नहीं करते , तब तक आप कभी भी , कुछ भी सीख नहीं सकते |

सबक ४ आशावाद

निराशावाद आप को कभी निराश नहीं करता | परंतु यही सिद्धांत विपरीत स्थिति में भी काम करता है | अगर आप अच्छी घटनाओं की आशा करते हैं , तो आम तौर पर घटनाएँ अच्छी होती हैं | ऐसा लगता है कि आशावाद और सफलता के बीच कारण और परिणाम जैसा प्राकृतिक संबंध है |
आशावाद और निराशावाद दोनों ही प्रबल शक्तियां हैं | हममें से एक को यह विकल्प चुनना पड़ता है कि हम इन दोनों में से किससे अपने दृष्टिकोण तथा भावनाओं को ढलवाना चाहते हैं | हर एक के जीवन में पर्याप्त अच्छी और बुरी परिस्थितयां आती हैं , बहुत सा दुःख और सुख , पर्याप्त ख़ुशी और गम | इसलिए आशावाद या निराशावाद के लिए तार्किक आधार ढूँढना संभव नहीं हैं | यह हमारा निर्णय है कि हम जीवन को किस दृष्टिकोण से देखना चाहते हैं ? क्या हम आशा भरी निगाहों से ऊपर देखना चाहते हैं या फिर निराशा से नीचे की तरफ ?
जिस तरीके से आप जीवन को देखते हैं , उसी से यह तय होता है आप कैसा महसूस करते हैं , कैसा प्रदर्शन करते हैं और दूसरे लोगों के साथ कितने अच्छे संबंध बना पाते हैं दूसरी ओर , नकारात्मक विचार , नकारात्मक नजरिया और निराशाएं अपने आप बढ़ते हैं | वे खुदबखुद पूरी होने वाली भविष्यवाणियाँ होते हैं | निराशावाद एक अँधेरी कोठरी बना लेता है , जहाँ कोई नहीं रहना चाहता |
आशावाद के अभाव में हमारे पास कुछ नहीं होता | तब हमारे पास सिर्फ आलोचक , नहीं कहने वाले लोग और विनाश के भविष्यवक्ता होते हैं  तो आशा मर जाती है | बहुत सारे लोग ऊपर की देखने के बजाय नीचे की ओर देखने में अपना बहुत सा समय बर्बाद करते हैं | और एक-दुसरे की गलतियाँ ही निकालते हैं |
गलतियाँ निकालने में इतनी ज्यादा नकारात्मक ऊर्जा खर्च हो जाती है कि सकारात्मक कार्यों के लिए ऊर्जा ही नहीं बचती | समाज को परेशान कर रही वास्तविक समस्याओं को सुलझाने के लिए साहस और शक्ति की आवश्यकता होती है | यह सच है कि ऐसी चीजें हमेशा रहेंगी , जिन्हें सुधारना आवश्यक होगा | परंतु सवाल यह है कि , क्या आप अपना समय और ऊर्जा चीजों को चीरफाड़ करने में लगाना चाहते हैं या फिर बनाने में |
हमें उन लोगों का सम्मान करना चाहिए , जो सृजन करते हैं और जोखिम उठाते हैं | जब हम समस्या सुलझाने वालों और सृजन करने वालों को श्रेय नहीं देते हैं , तो प्रयोगशीलता का दम घुटने लगता है | जब लोग यह जानते हों कि उनके काम को किसी निर्मम आलोचक की आलोचना से होकर गुजरना पड़ेगा , तो वे अपने आप पीछे हट जाते हैं और रचनात्मक प्रयास नहीं करते | जब हम नकारात्मकता को जरुरत से ज्यादा बढ़ावा देते हैं , जब हम आलोचकों को सर्जकों से ज्यादा सम्मान देते हैं, तो हम एक ऐसी पीढ़ी तैयार करने का जोखिम लेते हैं , जो सिर्फ चीजों की धज्जियाँ उड़ाना ही जानती है |
निराशावाद , दोष ढूँढना , नीचे की ओर देखना ये सारी बातें अकर्मण्यता की ओर ले जाती है | अगर आपको विश्वास हो कि सिस्टम को ठीक नहीं किया जा सकता , तो आप कभी कोशिश ही नहीं करेंगे | प्रगति की गाड़ी में हमेशा सकारात्मक व आशावादी चिंतन का ईंधन डाला जाता है | लोगों को प्रशंसा और प्रोत्साहन से शक्ति मिलती है |
आशावाद हमारे मस्तिष्क को नकारात्मक से दूर ले जाता है और इसे सकारात्मक व रचनात्मक चिंतन में ढालता है | जब आप आशावादी होते हैं , तो आप समस्या को सुलझाने के बारे में विचार करते हैं , व्यर्थ की आलोचना करने में समय बर्बाद नहीं करते हैं |

सबक ५ सम्मान

सम्मान इस बात से शुरू होता है कि आप अपने बारे में क्या सोंचते हैं | इसका इस बात से कोई लेना देना नहीं होता कि दूसरे आपके बारे में क्या कहते हैं | सम्मान शुरू होता है स्वयं को जानने से , स्वयं से प्रेम करने से , स्वयं को स्वीकार करने से |
सम्मान स्वयं पर निर्भर करता है | यह स्वयं की आन्तरिक शक्ति से संचालित होता है , , अपना सम्मान करने से और यह जानने से कि आप ईश्वर की अदभुत रचना हैं | इसका इस बात से कोई लेना-देना नहीं होता कि लोग आपकी तरफ कितना ध्यान देते हैं |
कुछ लोग कहते हैं कि प्रेम से दुनिया चलती है | ये एकदम सही है | परंतु व्याहारिक दृष्टि से देखें , तो लोगों के साथ हमारे रोजमर्रा के संबंधों में सम्मान से दुनिया चलती है | हर इंसान ईश्वर की छवि में रची गई रचना हैं | जिसके जीवन का लक्ष्य और स्थान होता है | जब हम इस आधार से काम करते हैं , तो हम लोगों को सम्मान देते हैं , उनसे उसी तरह का व्यवहार करके , जिस तरह का व्यवहार हम अपने लिए चाहते हैं | जब हम ऐसा करते हैं , तो हम अर्थपूर्ण और सशक्त तरीके से उन्हें स्वीकार करते हैं तथा उन्हें शक्ति देते हैं | हम उनके प्रति सम्मान दर्शाते हैं |
अगर हम इस आधार से काम नहीं करते , तो हम अपने पूर्वाग्रहों के अनुसार दूसरों को नीचा दिखाते हैं या नजरअंदाज कर देते हैं | अगर हम लोगों को वर्गीकृत करते हैं या श्रेणियों में बांटते हैं , तो हम उनसे उनकी गरिमा छीन लेते हैं | हमें लोगों को इस तराजू में नहीं तौलना चाहिए कि उनकी त्वचा का रंग या धर्म क्या है , या वे किस स्कूल में पढ़ें हैं या वे किस इलाके में रहते हैं या वे कौन सी कार चलाते हैं या वे कैसे कपड़े पहनते हैं या वे कौन सी भाषा बोलते हैं | अगर हम ऐसी दीवारें खड़ी करेंगे , अगर हम लोगों को सिर्फ लेबल की तरह देखेंगे , तो हम उन्हें ऐसे इंसानों के रूप में नहीं देख पाएंगे , जिनमें क्षमता और बुद्धि है | बहुत बार ऐसा होता है कि हम लोगों को उनके व्यवसायों से तौलते हैं और उनकी दक्षता, उनकी अनूठी तथा अदभुत क्षमताओं को अनदेखा कर देते हैं |
आम लोग हर देश की रीढ़ होते हैं | यही वे स्त्री-पुरुष हैं , जो काम को पूरा करते हैं | वे इस धरती के नमक हैं , समाज के ऐसे हीरो हैं , जिनकी प्रशंसा दुर्भाग्य से नहीं की जाती है |
लेखक अपना एक अनुभव बताते हुये कहते हैं -
मैं एक बार गर्मियों में एक ऐसे व्यक्ति से मिला , जब मैं और मेरा परिवार वेकेशन काटेज में रुके हुए थे | वह आदमी उस इलाके का गारबेज कलेक्टर यानि कचरा इकट्ठा करने वाला था | वह अपने काम को सर्वश्रेष्ठ तरीके से कर रहा था | वह सप्ताह में एक बार सुबह ठीक साढ़े छह बजे आता था | आप उसके आने के समय से अपनी घड़ी मिला सकते थे | वह कचरे को ट्रक की दिशा में लापरवाही से नहीं फेंकता था | बल्कि पूरे प्रयास और कौशल के साथ वह डिब्बा उठाता था , ट्रक में कचरा खाली करता था , डिब्बे को सड़क के किनारे वापस रखता था और सावधानी से उसका ढक्कन बंद कर देता था | सहजता और कुशलता से काम करते हुए इस योग्य व्यक्ति ने शारीरिक रूप से थकाने वाले काम को भी आसान बना दिया था |
दो सप्ताह तक मैंने इस आदमी को काम करते हुए देखा | फिर सुबह जब वह आया , तो मैं उसका अभिवादन करने के लिए बाहर निकला | मैंने उससे कहा - "आपके काम करने का तरीका बहुत बढ़िया है |"
उसने यह कल्पना भी नहीं की होगी कि कोई आदमी सुबह-सुबह बिस्तर छोड़कर सिर्फ उसकी प्रंशसा करने के लिए बाहर निकल सकता है |
"आपके काम करने का तरीका बहुत प्रशंसनीय है |" जब मैंने यह कहा, तो उसके चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान खिल गयी | फिर उसने मुझे बताया कि वह बारह साल से कचरा उठा रहा है ,परंतु किसी ने भी उसकी कभी तारीफ नहीं की , जिसमें उसका बॉस भी शामिल था | बारह साल से यह आदमी सर्वश्रेष्ठ और गरिमापूर्ण ढंग से अपना काम कर रहा था , परंतु उसे प्रोत्साहन या धन्यवाद का एक भी शब्द सुनने को नहीं मिला | उस आदमी में आत्मसम्मान था |
सम्मान पारस्परिक होता है | "जो आप देते हैं , वही आपके पास वापस लौटता है |" दूसरे शब्दों में , यदि आप सम्मान पाना चाहते हैं , तो आपको दूसरों को सम्मान देना चाहिए | अगर आप सम्मान नहीं देते तो यह आपके पास वापस लौटकर नहीं आयेगा |
सम्मान कोई ऐसी चीज नहीं है , जिसे माँगकर हासिल किया जा सके | इसे तो अर्जित करना पड़ता है |
उन सब लोगों के बारे में सोचिये , जिनके आप नियमित संपर्क में हैं - परिवार , मित्र , ग्राहक और सहकर्मी | वे सब आपके जीवन को किसी अनूठे या ख़ास तरीके से स्पर्श करते हैं | इनमें से कितने लोग यह जानते हैं कि आप उनके काम और व्यक्तित्व का सम्मान करते हैं ? हो सकता है कि आप मन में उनकी सराहना करते हों या आपको उनकी जरूरत महसूस होती है , परंतु क्या आपने ऐसा कहा है ? उन्हें बता दें | उन्हें दिखा दें | उन्हें वह सम्मान दें , जिसके वे हकदार हैं | उनके प्रति अपने सम्मान को शब्दों में व्यक्त करें | आखिर सम्मान से ही तो दुनिया चलती है |

सबक ६ जवाबदेही

हर व्यक्ति किसी न किसी के प्रति जवाबदेह होता है | जवाबदेही वह गोंद है , जो समाज को जोड़े रखती है | सामाजिक अनुबंध निर्धारित करता है कि हमें एक-दूसरे के साथ किस तरह व्यवहार करना चाहिए | हालाँकि सैधांतिक दृष्टि से यह सही है , परंतु व्यवहार में सामाजिक अनुबंध अमूर्त भी होता है और मूर्त भी | मूर्त अनुबंध हमारे देश के कानून हैं | अमूर्त अनुबंध हमारे अपने व्यक्तिगत मूल्यों यानि हमारी जवाबदेही में प्रदर्शित होता है |
बुरी से बुरी स्थिति में भी , असंख्य लोगों ने अच्छे निर्णय लिए हैं , खुद को जवाबदेह माना है और अपने लक्ष्य हासिल किये हैं |
जब हम अपने कामों की पूरी जिम्मेदारी लेते हैं , तभी हम अपनी गलतियों के बोझ को कम कर सकते हैं और आगे बढ़ सकते हैं | जवाबदेही हमेशा अपनी जिम्मेदारी मानने के बारे में है , इसे दूसरे व्यक्ति पर थोपने के बारे में नहीं है |
लेखक ने यहाँ पर जवाबदेही के बारे में तीन सिद्धांत बताएं हैं -
पहला सिद्धांत आपके पास जितना ज्यादा है, आप उतना ही ज्यादा जवाबदेह हैं | अमीर आदमी को उसकी सम्पत्ति के उपयोग के लिए जिम्मेदार माना जाना चाहिए | इसलिए अगर आपका लक्ष्य अमीर बनना है , तो आपको इसके साथ आने वाली जिम्मेदारी उठाने के लिए भी तैयार रहना चाहिए |
हमारी पूंजी कुछ भी हो - आर्थिक , व्यक्तिगत , पद , अवसर या योग्यता - हमसे उस पूंजी के सर्वश्रेष्ठ उपयोग की अपेक्षा की जाती है | यही वजह है कि जिन लोगों का सार्वजनिक प्रभाव अधिक होता है , उन पर अच्छा उदाहरण पेश करने की ज्यादा बड़ी जिम्मेदारी होती है , क्योंकि उनके जीवन पर लोग ज्यादा ध्यान देते हैं |
इसके अलावा , जिनमें अधिक बुद्धि है , उन्हें अपनी बुद्धि का प्रयोग जनहित में करना चाहिए और जिनमें कलात्मक प्रतिभा है , उनकी यह विशेष जिम्मेदारी है कि वे लोगों को प्रेरित और  शिक्षित करें | दरअसल हममें से हर एक से अपेक्षा की जाती है कि हम अपने विशेष गुणों को सम्मानजनक लक्ष्यों का पीछा करने में लगायें | और मेरा दृढ विश्वास है कि हर व्यक्ति मे कोई न कोई योग्यता अवश्य होती है |
दूसरा सिद्धांत बिना स्वतंत्रता के जवाबदेही नहीं होती | जवाबदेही और स्वतंत्रता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं | अगर हम लोगों को जवाबदेह बनाना चाहते हैं , तो हमें एक ऐसा माहौल , एक ऐसा समाज बनाना होगा , जिसमें उनके पास जोखिम लेने और गलतियाँ करने की स्वतंत्रता हो | हमारे पास असफल होने की स्वतंत्रता होना चाहिये और हम जितना आगे बढ़ सकते हैं , हमारे पास उतना आगे बढ़ने की स्वतंत्रता होना चाहिए |
तीसरा सिद्धांत बिना मूल्यांकन के जवाबदेही नहीं होती | किसी तरह के निष्पक्ष मूल्यांकन के बिना जवाबदेह होना मुश्किल होता है |
मूल्यांकन कई रूपों में हो सकता है | स्कुल में शिक्षक अपने विद्यार्थियों की प्रगति का मूल्यांकन करने के लिए टेस्ट और परीक्षाएं लेते हैं | बिना नियमित मूल्यांकन के मेहनती विद्यार्थी या शिक्षक या किसी भी व्यवसाय में कोई भी व्यक्ति उन लोगों से ऊपर नहीं उठ सकता , जो काम नहीं करना चाहते और सिर्फ बहाव में बहते रहते हैं |
जवाबदेही से बचाकर हम किसी का भला नहीं करते | मूल्यांकन , चाहे वह स्वैच्छिक हो या अनिवार्य , उत्कृष्टता को प्रोत्साहित करने में मुख्य भूमिका निभाता है |
हर व्यक्ति किसी न किसी के प्रति जवाबदेह होता है | इस जवाबदेही का प्रयोग इस तरह करें , ताकि यह आपको उस तरफ आगे बढ़ाये , जहाँ आप जाना चाहते हैं |

सबक ७ परिवार

प्रेम और जिम्मेदारी घर पर सीखे जातें हैं | यहीं पर जीवनमूल्य एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सौपें जाते हैं | प्रजातंत्र की नींव , वह आधार जिस पर अच्छा जीवन बनता है , परिवार नाम की संस्था है |
जिन संस्थाओं से समाज बनता है , अगर उनके महत्व के क्रम में रखा जाय तो परिवार का नाम सबसे ऊपर आता है | समाज की हर संस्था , चाहे वह सरकार हो , बाजार हो , स्कुल हो , विश्वविद्यालय हो , चर्च हो , उसका अस्तित्व वहीँ बनता है जहाँ स्वस्थ परिवार रहता है |
अगर व्यक्ति और समाज के रूप में हम अपने जीवनसाथी और बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारी का पालन नहीं करेंगे तो इसकी भविष्य में भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है |
लापरवाह या कठोर अभिभावक , टूटते हुए विवाह और बिखरे हुए घर , और नैतिक रूप से अशिक्षित या हिंसक बच्चे | आध्यात्मिक जीवनमूल्यों की नींव के बिना हमारे बच्चों के पास ऐसा संबल नहीं होगा , जिसके सहारे वे मुश्किल समय को पार कर सकें |
निष्क्रिय लालन-पालन का सिद्धांत जो यह कहता है , आप क्या कहते हैं यह महत्वपूर्ण नहीं होता , महत्वपूर्ण तो वह होता है जो आप करते हैं | परंतु सिर्फ उदाहरण प्रस्तुत करना ही काफी नहीं होता | बच्चों के साथ सक्रिय संवाद करना जरुरी होता है |
अगर आप इतने ज्यादा व्यस्त हैं कि अपने परिवार के साथ समय न बिता पाए , तो आप जरुरत से ज्यादा व्यस्त हैं | अपने परिवार के साथ बिताये गए क्वालिटी टाइम का कोई विकल्प नहीं होता |
आप अपने हिसाब से सर्वश्रेष्ठ काम करें और बाकी ईश्वर के भरोसे छोड़ दें | और हाँ , सबसे महत्वपूर्ण संस्था यानि परिवार के लिए आप ईश्वर को धन्यवाद देना न भूले |

सबक ८ स्वतंत्रता

हम स्वतंत्रता द्वारा मिले अधिकारों और अवसरों के इतने आदी हो चुके हैं कि हममें से कुछ को लगने लगा है, जैसे इन लाभों पर हमारा अधिकार है | स्वतंत्रता की एक कीमत होती है | जिसे हमारी पिछली पीढ़ियों ने अपने संघर्ष और बलिदान देकर चुकायी है | वह हमें मुफ्त में नहीं मिली है | हमें भी इसे बनाये रखने के लिए उतना ही काम करना होगा |
जो लोग ऊँचें या आरामदेह जीवन का आनन्द लेते हैं , उन्हें अपनी नियामतों के लिए ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए | और हर दिन जिम्मेदार , उदार होना चाहिए , ताकि हमें जितना दिया गया है , हम उसे औरों को दे सकें |

सबक ९ आस्था

आस्था सक्रिय होती है | यह ऐसा भाव है , जिसे आप जीते हैं और जिसकी आप घोषणा करते हैं | यही नहीं, आस्था आपको बुरी से बुरी परिस्थतियों में भी सहारा देती है | चाहे वे बिज़नेस में हों या व्यक्तिगत जीवन में |
चाहे परिस्थतियां कितनी ही बुरी क्यों न हों , हर पल हमें एक महत्वपूर्ण विकल्प चुनना होता है | या तो हम चिंता से भरी हुई दुविधा में गोते खाएं या फिर जीवित आस्था का सहारा लें , जो आगे बढ़ने की शक्ति देती है |
आस्था तर्क से परे है , यह तब काम करती है जब आप नहीं जानते कि क्या करना चाहिए या क्या होने वाला है | यह मौत का सामना करते हुए भी जीवित बने रहने का विकल्प है | यह जोखिम लेने की इच्छा है , तब भी जब परिस्थतियां विपरीत या विषम लग रहीं हों | यह एक उपहार है , जिसे आप प्राप्त करते हैं और एक विकल्प जिसे आप चुनते हैं | यह वह विश्वास है जो सर्वाधिक अनिश्चित और मुश्किल परिस्थतियों का भी मकसद होता है , चाहे आप इसे देख सकते हों या न देख सकते हों |
आस्था मनचाही वस्तुओं का सार है , आस्था अद्रश्य वस्तुओं का प्रमाण है , यह इस बात का ज्ञान है कि जीवन में और मृत्यु में सिर्फ एक ही चीज पूरी तरह से निश्चित है और वह है ईश्वर का प्रेम और उसकी आस्था |
हमारे पास जो भी है , वह सब ईश्वर का है , हमें ये सिर्फ कुछ समय के लिए मिला होता है | चाहे जीवन में हम किसी भी मुकाम पर हों या हमारी आर्थिक स्थिति कैसी भी हो , ईश्वर की रूचि हमारे हृदय की स्थिति में होती है , हमारे बैंक अकाउंट की स्थिति में नहीं होती | जब ईश्वर हमें भौतिक वरदान देता है , तो वह ऐसा एक बड़े कारण से करता है और यह कारण हमारे व्यक्तिगत आराम से अधिक बड़ा होता है | अमीरों को  उस बड़े लक्ष्य के प्रति जिम्मेदारी स्वीकार करना होगा | हम ईश्वर के द्वारा अपेक्षित इस जिम्मेदारी से कभी नहीं बच सकते कि हम अपने धन का उपयोग उस तरह से करें , जो हमारे धर्म के सामंजस्य में हो |
बिना आस्था के जीवन का कोई लक्ष्य नहीं होता , कोई दिशा नहीं होती | बिना आस्था के सफलता खोखली होती है |

सबक १० कृपा

इस अध्याय में लेखक अपने जीवन का अदभुत और चमत्कारिक अनुभव बताते हैं | ७० वर्ष की अवस्था में लेखक का हार्ट ट्रांसप्लांट यानि हृदय प्रत्यारोपण होना था | इससे पहले पैंसठ वर्ष की आयु में दो बार उनकी ओपन हार्ट बायपास सर्जरी हुई थी | जिसमें उनकी हृदय की छह धमनियाँ ख़राब हो गयी थी | स्थिति यह थी पूरे अमेरिका में कोई भी डाक्टर उनका केस लेने को तैयार नहीं था | बहुत खोजने के बाद लन्दन के एक प्रसिद्ध हॉस्पिटल के एक डाक्टर काफी सोंच-विचार के बाद उनका केस लेने को तैयार हुए |
हृदय प्रत्यारोपण जिसमें एक शरीर से उसका हृदय निकालकर उसके स्थान पर किसी दूसरे व्यक्ति का हृदय लगाया जाता है | जो मेडिकल साइंस से भी आगे की चीज है | यह न सिर्फ चिकित्सा विज्ञान का बल्कि उस इंसान के चरित्र और इच्छाशक्ति का भी बहुत बड़ा इम्तिहान होता है जिसका हृदय प्रत्यारोपण होता है | इसके लिए सबसे पहले एक हृदय दानदाता की जरुरत थी | लेखक के केस में एक मुश्किल चीज यह थी कि उनका हृदय हाई हार्ट प्रेशर की वजह से दायीं तरफ से कुछ बड़ा हो गया था | यानि इसके लिए एक ऐसे हृदय दानदाता की जरुरत थी जिसका हृदय भी दायीं तरफ से बड़ा हो | जो बहुत ही दुर्लभ संयोग था | हृदय सिर्फ चार घंटे तक ही शरीर के बाहर रखा जा सकता है | उसके बाद वह ख़राब हो जाता है |  
लेखक अपनी पत्नी के साथ हॉस्पिटल के पास ही एक होटल में ठहरे हुए थे | जिससे कि जब भी हॉस्पिटल से हृदय मिल जाने का कोई फोन आये तो वे समय पर हॉस्पिटल पहुँच सकें | अब उन्हें सिर्फ इन्तेजार करना था | इस बीच उनका स्वास्थ भी बिगड़ता जा रहा था और शरीर कमजोर होता जा रहा था |  
करीब पाँच महीने इंतज़ार के बाद , हॉस्पिटल का फोन आया कि उन्हें एक हृदय मिल गया था |  एक ३९ साल की महिला के फेफड़ों का प्रत्यारोपण होना था | उसके फेफड़े ख़राब हो गए थे | जिसकी वजह से उसके हृदय का दायाँ हिस्सा कुछ बड़ा हो गया था |
फेफड़े के प्रत्यारोपण के केस में फेफड़े और हृदय दोनों का एक साथ एक अंग की तरह प्रत्यारोपण किया जाता है तभी फेफड़े सही ढंग से काम करते हैं | उस महिला के लिए फेफड़ा और हृदय खोज लिया गया था | जो एक कार दुर्घटना में मरे हुए किसी युवक का था |
ईश्वरीय संयोग की वजह से , उस महिला का दायें तरफ से बढ़ा हुआ हृदय किसी और के काम का नहीं था और लेखक के लिए एकदम उपयुक्त था | सचमुच , ईश्वर छोटी- छोटी बातों का कितना ख्याल रखता है और घटनाओं के बीच कितने सुन्दर ढंग से सामंजस्य बैठाता है |
कल्पना से भी परे , उस सफल और दर्दनाक आपरेशन के कुछ ही दिनों के बाद लेखक उस हॉस्पिटल के हाल में अपने दर्द भरे शरीर के साथ टहल रहे थे , तभी उनकी मुलाकात एक महिला रोगी से हुई |
उस महिला ने पूछा आपके शरीर में नया हृदय लगाया गया है ?
लेखक ने कहा हाँ
कब, किस दिन , किस समय , बिलकुल ठीक-ठीक बताएं , यह हृदय आपको कब मिला? उस महिला ने पूछा |
लेखक ने उसे सब बता दिया |
वह एक पल के लिए रुकी और मुस्कुराते हुए बोली आपके शरीर में मेरा हृदय लगाया गया है |
अदभुत चमत्कार था ईश्वर का | लेखक उसी महिला से बातें कर रहे थे जिसका हृदय उनके शरीर में लगाया गया था | और वह भी जीवित थी , स्वस्थ थी , और ईश्वरीय चमत्कार से उबर रही थी |
आध्यामिक रूप वे लोग अंधे ही होतें हैं जो ईश्वर की इस कृपा को न समझ पाते हों |
ईश्वर की कृपा सबसे निराशाजनक स्थितियों में भी आशा प्रदान करती है |


और अंत में .......

असफलता का डर हमें सफलता की कोशिश करने से रोकता है |
हारने का डर हमें जीतने की कोशिश करने से रोकता है |
लोग क्या कहेंगे , इस बात का डर हमें बहादुरी से आगे बढ़ने से रोकता है |
माखौल उड़ाने का डर , हमें ईश्वर में अपनी आस्था की घोषणा करने से रोकता है |
सबसे बड़ी बात , डर आशा का गला घोंट देता है |

डर से जीतने की इकलौती दवा जिससे दुनिया के सारे डरों को जीता जा सकता है | .... ईश्वर में आशा |
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दोस्तों इस बुक समरी की यहाँ पर वीडियो भी उपलब्ध है | ये वीडियो तीन पार्ट में कवर की गई है-


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